सोमवार, 22 जून 2009

यादों का साया . . .

वफा की चाहत में ये,

दिल दीवाना हो गया ।

रहता है जिस तन में,

उससे बेगाना हो गया ।

नजरों में तस्‍वीर उसकी,

बसाये जमाना हो गया ।

न‍हीं छूटता यादों का साया,

ये तो इक खजाना हो गया ।

हम कदम हम निवाला था जो,

वो ख्‍वाब बन पुराना हो गया

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....