मंगलवार, 16 नवंबर 2010

एक नया दर्द .....








दर्द के रिश्‍ते में एक नया दर्द आ गया,

भूलकर हर दर्द जब भी मुस्‍कराना चाहा ।

आंखे ख्‍वाब सजा लेती एक नया फिर से,

जब भी मैने टूटा हुआ ख्‍वाब छुपाना चाहा ।

पलकों पे आंसू मोती बनके चमक उठते,

जब भी तुम्‍हें इस दिल ने भुलाना चाहा ।

लम्‍हे जुदाई के आते जब मुहब्‍बत में

जीने के बदले फक़त मर जाना चाहा ।

टूटे सपने, बहते आंसू, जुदाई के पल ले

यादों की गली से खामोश ही जाना चाहा ।

21 टिप्‍पणियां:

  1. आखें ख्वाब सजा लेतीं एक नया फिर .....वाह बहुत खूबसूरत गज़ल

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  2. Aah!Ek hara-sa zakhm kureda gaya!Behad sundar likhti hain aap!

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  3. cटूटे सपने , बहते आँसू , जुदाई के पल्……………बस यही तो अमानत हैं…………………दर्द को शब्द दे दिये।

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  4. .

    प्रेम में आंसू भी प्रिय लगने लगते हैं।

    .

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  5. ख्वाब देखने मे अच्छे लगते हैं मगर दर्द देते हैं। अच्छी लगी रचना। बधाई।

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  6. दर्द की अनुभूति पर अच्छी रचना ।

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  7. एक एक एहसास को सच्चाई का जामा बहुत सुंदर शब्दों की हिफाज़त से पहनाया है. सुंदर नज़्म.

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  8. dard ko bakhubi kaha hai aane
    achhi rachna

    www.deepti09sharma.blogspot.com

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  9. aankhe khwaab saja leti hain ...
    bahut hi lajawaab nazm hai ... dil ki gahraiyon se nikle huve shbd hain ...

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  10. दर्द को एक नए अंदाज़ में व्यक्त करना इस गज़ल की खूबी है.अच्छा लगा इसे पढ़ना.

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  11. 5/10

    सुन्दर भावपूर्ण लेखन
    दर्द का यह अहसास बहुत ख़ास सा है ..
    "टूटे सपने, बहते आंसू, जुदाई के पल ले
    यादों की गली से खामोश ही जाना चाहा ।"

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  12. आंखे ख्‍वाब सजा लेती एक नया फिर से,
    जब भी मैने टूटा हुआ ख्‍वाब छुपाना चाहा ।
    ...दिल को छु लेने वाली पंक्तियाँ ...हर एक लफ्ज में दर्द है काश यह दर्द न होता ..तो हाल -ए - दिल यह न होता ...सुंदर अभिव्यक्ति
    चलते -चलते पर आपका स्वागत है

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  13. दर्द के साथ जीना सीखो
    हंस के गले लगाना सीखो
    दर्द में सुकून ढूंढों
    निरंतर हिस्सा जिन्दगी का
    समझो

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  14. बहुत पसन्द आया
    हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
    बहुत देर से पहुँच पाया ...............माफी चाहता हूँ..

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  15. sada, bahut hi sudnar rachna ...padhkar man bhar gaya hai ji


    badhayi

    vijay
    kavitao ke man se ...
    pls visit my blog - poemsofvijay.blogspot.com

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  16. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 10 अगस्त 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....