शनिवार, 26 मार्च 2011

मां मेरी हमजोली है ...















मैने अभी-अभी
मां कहना सीखा है,
और कोई शब्‍द मुंह से
निकलता है न मेरी बोली
कोई समझता है,
सच मानो तो
मां मेरी हमजोली है
मेरे आंखों की भाषा को
वह पढ़ लेती है,
मेरे मौन को भी सुन लेती है
मैने अभी-अभी ....।।
मेरी भूख-प्‍यास का
मुझसे पहले
मां को पता चल जाता है,
जब भी मैने
मां की उंगली थामी है
चलते से रूक जाती है
मेरी ममता की मनुहार को
आंचल में अपने छिपाती है
माथे पे मेरे
बुरी नज़र से बचने को
काज़ल का टीका भी लगाती है
मैने अभी - अभी ....।।

23 टिप्‍पणियां:

  1. दिल को छू रही है यह कविता .......... सत्य की बेहद करीब है ......

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  2. बहुत सुंदर ममत्वभरी रचना| धन्यवाद|

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  3. मै तो कहूँगा बस माँ माँ माँ .... इसके सिवा कुछ नहीं माँ की याद दिलादी आपने

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  4. शिशु की बोली में भावनामय कविता सुकोमल स्पर्श का अनुभव दे रही है.

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  5. अति सुन्दर अभिव्यक्ति
    बच्चे ने ही तो सबसे पहले ईश्वर की पहचान माँ के रूप में की.पिता को उसके बाद पहचाना.
    इसीलिए कहा गया 'त्वमेव माता श्च पिता त्वमेव'
    उसके बाद बंधू,फिर सखा ,विद्या और धन आदि आदि.
    मेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा' पर आपका स्वागत है.

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  6. नवजात शिशु के नाज़ुक भावों को बड़े सलीके से उकेरा है आपने. इस सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें.
    ---देवेंद्र गौतम

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  7. आपकी इस कविता को पढ़कर मैं भी अभी-अभी अपने बचपन से लौटी...
    बहुत ही सुन्दर...

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  8. bahut marmik varnan ,matritva ki koyi anya upma nahin , maa ke sthan se koyi uncha sthan nahin .
    atulaniy, apratim . sundar kavy ke liye abhar .

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  9. होली की बहुत बहुत शुभकामनाये आपका ब्लॉग बहुत ही सुन्दर है उतने ही सुन्दर आपके विचार है जो सोचने पर मजबूर करदेते है
    कभी मेरे ब्लॉग पे भी पधारिये में निचे अपने लिंक दे रहा हु
    धन्यवाद्

    http://vangaydinesh.blogspot.com/
    http://dineshpareek19.blogspot.com/
    http://pareekofindia.blogspot.com/

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  10. आपकी भावना और आपके शब्द दोनों अच्छे लगे .
    मैं आपके लिए नेक ख्वाहिशात पेश करता हूँ.

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  11. मातृत्व छलक रहा है ... बहुत ही मन को छू रही है आपकी रचना ...

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....