शनिवार, 23 जून 2012

ये जमा पूँजी ... !!!

मन आज अकेला नहीं
रहना चाहता
वह खोज रहा है अपनी टोली
कुछ शैतानियां कुछ जिज्ञासाओं को
अपने काँधे पे बिठाकर
आ बैठा आंगन में 
यादों की गुल्‍लक को सीने से लगाये
जिसमें डाले थे कभी कुछ पल
हँसी के कुछ अपनेपन के
कुछ कीमती लम्‍हे थे
तुम्‍हारे साथ बिताये हुए
ये जमा पूँजी सम्‍बंधों की स्‍नेहवत
मैने तुम्‍हारे कहने पर ही
सिंचित की थी
...
आओ तुम भी शामिल हो जाओ
मेरी इस टोली में
तुम्‍हारी शैतानियां मेरी शै‍तानियों के
कान खींचती हैं तो
दर्द में भी एक मुस्‍कान होती है
फिर तुम्‍हे तंग करने का
मौका कैसे जाने दूँ
आज मैं टोली के साथ हूँ
बस एक कमी है
वो तुम्‍हारे आने से दूर हो जाएगी
...

31 टिप्‍पणियां:

  1. यह कमी भी क्यों रहे आखिर
    बहुत सुन्दर भाव

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  2. हमजोली हो तो तो हर कमी दूर हो जाती है।

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  3. बस एक कमी है
    वो तुम्‍हारे आने से दूर हो जाएगी,,,,

    भावों की सुंदर प्रस्तुति,,,,,

    MY RECENT POST:...काव्यान्जलि ...: यह स्वर्ण पंछी था कभी...

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  4. बहुत खूबसूरत और भावप्रवण रचना । सदा जी एक अनुरोध है आप देखिये आपके ब्लोग मे कुछ ऐसा है जब भी खोलती हूँ तो मेरा कम्प्यूटर हैंग सा हो जाता है और काफ़ी देर मे खुलता है आपका ब्लोग जबकि पहले ऐसा नही होता था एक आपके ब्लोग के साथ और एक रश्मि प्रभा जी के ब्लोग के साथ ऐसा हो रहा है बाकि सबके ब्लोग एक क्लिक मे खुल जाते हैं।

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  5. खूबसूरत भोली भाली सी रचना....
    सादर बधाई।

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  6. आज मैं टोली के साथ हूँ
    बस एक कमी है
    वो तुम्‍हारे आने से दूर हो जाएगी


    भावनाओं का बहुत सुंदर चित्रण . ...बधाई.

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  7. मैं टोली के साथ हूँ...सुन्दर लिखा है...

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  8. बहुत सुंदर बहुत सी यादों के कीमती लम्हे ....

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  9. प्यारी मनमोहक रचना .... बहुत सुंदर

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  10. फिर तुम्‍हे तंग करने का
    मौका कैसे जाने दूँ
    आज मैं टोली के साथ हूँ
    बस एक कमी है
    वो तुम्‍हारे आने से दूर हो जाएगी

    प्यारी रचना

    जवाब देंहटाएं
  11. आओ तुम भी शामिल हो जाओ
    मेरी इस टोली में
    तुम्‍हारी शैतानियां मेरी शै‍तानियों के
    कान खींचती हैं तो
    दर्द में भी एक मुस्‍कान होती है
    फिर तुम्‍हे तंग करने का
    मौका कैसे जाने दूँ
    सदा जी मुबारक हो ..अच्छी रचना ..ये कमी क्यों रहे आओ शामिल हो जाओ इस टोली में ...बहुत खूब

    बधाइयाँ अर्पिता के लिए .....

    प्रिय संजय भाई ..बहुत खूब ..सुन्दर समीक्षा ..आप के माध्यम से सदा जी को 'अर्पिता' के लिए भ्रमर की बधाई और आप को भी ...
    भ्रमर ५
    भ्रमर का दर्द और दर्पण

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  12. ब्लॉग को गुल्लक बना कर सहेज दी आपने अपनी जमा पूँजी।
    अंतिम पंक्ति कविता को सुंदर बनाती है।

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  13. साथ रहकर क्या कुछ नहीं हो सकता.

    सुंदर प्रस्तुति.

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  14. बच्चों के साथ साथ मन को भी चंचल होने देने का समय है आजकल ... छुट्टियों में जीना का समय है ... सुन्दर भाव ...

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  15. बचपन की याद दिलाती खूबसूरत रचना शायद वो बचपन के दोस्त ही होते हैं जिनका इंतज़ार यह कहने को मजबूर कर देता है की बस एक तुम्हारी ही कमी है।

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  16. कोमल अहसास की सुंदर रचना जो बचपन को जगा जाती है.

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....