गुरुवार, 29 नवंबर 2012

मैं हँसता था जब वो कहकहों का दौर कोई और था ...!!!















यह सच है जब कोई रूठा हो तो फिर हँसकर बात नहीं करता,
आहत हो जाता मन कितना जब कोई अपना बात नहीं करता  ।

अपनों की  भीड़ में सिकुड़ा सिमटा रहता हूँ जैसे कैदी हो कोई,
डालकर नज़र बढ़ जाते हैं आगे पर कोई भी बात नहीं करता ।

मैं हँसता था जब वो कहकहों का दौर कोई और था अब देखो,
होठों पर मुस्‍कान लिए बैठा हूँ फिर भी कोई बात नहीं करता ।

मैं वही हूँ वही है वजूद मेरा फिर भी अनमना सा क्‍यूँ है कोई,
कहता हूँ जब भी कुछ सुन लेते हैं पर कोई भी बात नहीं करता ।

दौर कितना भी मुश्किल आए इतना भी मुश्किल न हो जाए
अपनों की महफिल़ में कोई अपनों से ही जब बात नहीं करता ।

सोमवार, 26 नवंबर 2012

रूह से रूह का रिश्‍ता ...!!!

















प्रेम की महिमा में
आख्‍यानों का आयोजन कर
विषय विशेष पर टीका-टिप्‍पणी करते  गुणीजन
बस इसे ढूँढते ही रहे कस्‍तूरी की भांति,
ये तो ठहरा रूह से रूह का रिश्‍ता
जो अंजाने ही बांध लेता जन्‍मों-जनम के लिए
कुछ समय के लिए जो होता है
वो प्रेम कहां महज़ आकर्षण
प्रेम तो हर हाल में
संकल्‍प के मंत्रों से गुंजायमान रहता है
मन का हर कोना अभिमंत्रित हो अगर के धुएं सा
मोहक और सुगंधित हो जैसे !
....
हर परिभाषा से मुक्‍त
नेह के सोपानो पे दौड़ता
कभी छू लेता तारो-सितारों को
कभी दीदारे यार कर बैठता चांद में
प्रेम का होना
फिज़ाओं में खुश्‍बू सा घुलना चाहत का
मूक रहकर भी कह जाना दिल की हर बात
सिर्फ संभव है प्रेम में !!
...

गुरुवार, 22 नवंबर 2012

कुछ रिश्‍ते ... (7)

कुछ रिश्‍ते
धोखा होते हैं
जो छल करते हुए
जिन्‍दा रहते हैं !
.....
कुछ रिश्‍ते
अंबर होते हैं
कहीं भी रहो
वो अपना साया कर देते हैं !
.....
कुछ रिश्‍ते
बन जाते हैं स्‍वयं ही
कुछ बनाये जाते हैं
कुछ टूट जाते हैं
फिर भी निभाये जाते हैं !
...
कुछ रिश्‍ते
हमेशा साथ होते हैं
चाहे वक्‍त उनमें कितनी भी
दूरियां ले आये !
...
कुछ रिश्‍ते सूख जाते हैं
वक्‍़त की धूप में जब भी
एक प्‍यास जागती है मन में
इन्‍हें नम रखने के लिए !!!
....

सोमवार, 19 नवंबर 2012

ख्‍यालों की भीड़ में !!!










कभी खोये से ख्‍याल,
मिल जाते हैं जब
एक जगह तो सवाल करते हैं
अपने आप से ?
ऐसा क्‍यूँ है कोई आवाज उठाता
हक़ की कोई कहता
मेरी कद्र क्‍यूँ नहीं की ?
मैं हालातों का जिक्र करती
समझौते की जिन्‍दगी
कैसे जीनी होती है बतलाती
पर कहाँ सुनते वे मेरी !
....
कभी तेज़ हवाओं के बीच
तुम रहे हो ?
यदि हां तो कितने अस्‍त-व्‍यस्‍त
हो गये होगे
उन पलों के बीच
बस उसी तरह से आज
कुछ तेज ख्‍यालों के बीच में
मैं हूँ ! हर ख्‍याल
एक अपनी ही तेजी में है
मेरी कुछ सुनता ही नहीं
मैं सुनते-सुनते सबकी
अपनी कहना भूल ही गई
किस ख्‍याल का अभिनन्‍दन करूं
तो किस ख्‍याल के आगे
हो जाऊँ नतमस्‍तक
....
एक उलझन सी है जिसमें
कुछ ख्‍याल उलझ गये हैं
कुछ गुथे से हैं एक दूसरे में
अपनी मैं का मान लिए
सबके सम्‍मान में
खामोश सी मैं एक
नन्‍हें ख्‍याल की उँगली थाम
चली हूँ अभी - अभी
कहीं वो गुम न जाए
ख्‍यालों की भीड़ में !!!
.....

शनिवार, 17 नवंबर 2012

इसका होना ही प्रेम है !!!













कुछ शब्‍दों का भार आज
कविता पर है
वो थकी है मेरे मन के बोझ भरे शब्‍दों से
पर समझती ह‍ै मेरे मन को
तभी परत - दर - परत
खुलती जा रही है तह लग उसकी सारी हदें
उतरी है कागज़ पर बनकर
तुम्‍हारा प्‍यार कभी
कभी बेचैनी बनकर झांकती सी है पंक्तियों में !
...
कभी आतुर हुई है तुमसे
इकरार करने को मुहब्‍बत का
या फिर कभी जकड़ी गई बेडि़यों में
पर यकीं जानो वह मुहब्‍बत
आज भी जिंदा है  मरी नहीं
सुबूत मत मांगना
ये धड़कने तुम्‍हारे नाम पर
अब भी तेज हो जाती हैं !!
...
जब भी प्रेम
लम्‍हा बन आंखों में ठहरता है,
मुझे इसमें ईश्‍वर दिखाई देता है
किसी ने कहा है प्रेम और ईश्‍वर दोनो
एक ही तत्‍व हैं
तुमने भी तो कहा था
कुछ भी अमर नहीं है सिवाय प्रेम के
कहो मैं कैसे भूलती फिर इस 'प्रेम' को
इसका अहसास, इसके अमरत्‍व की
एक बूँद कभी बारिश बनकर बरसती है,
कभी टपकती है आंखो से आंसुओं के रूप में
कभी चंदा की चांदनी बन
पूरे आंसमा को नहीं धरा को भी रौशन करती है
पर आज इसका पूरा भार
कविता पर है, इसकी रचना
इसका होना ही प्रेम है !!!

सोमवार, 12 नवंबर 2012

दिये का रिश्‍ता देखो बाती से ... !!!














सजती है रंगोली आंगन में,
कण-कण में ये विश्‍वास लेकर,
जलेगा दीप शुभकामना का
अपनी उम्‍मीदों का
प्रकाश लेकर
.......
भावनाओं की बाती को
स्‍नेह से दिये ने
अपने मस्‍तक लिया जब भी
'' तमसो मा ज्‍योतिर्गमय ''
का संदेश 'दीप' ने सदा
अंतिम श्‍वास तक दिया
...

दिये का रिश्‍ता
देखो बाती से कितना गहरा है,
अंधकार नीचे जाकर ठहरा है  !
...
आलोकमय हो इनके रिश्‍ते सा
हर जीवन
इनके साये में देखो तो
खुशियों का पहरा है !!

गुरुवार, 8 नवंबर 2012

एक कदम हौसले का ...!!!













मुश्किलों में संभलना हो तो
हर मुश्किल पर उसका इस्‍तक़बाल करो
जब भी कभी ऊंचाईयों से डरा है मन,
एक कदम हौसले का धीरे से
सहमे हुये मन के पास आया है
और पूछा है
किस बात का डर
मैं हूँ न तुम्‍हारे साथ
घबराकर जब भी पलकों को बंद किया,
एक किरण रौशनी की
मेरी पलकों में समाई और
चमकते हुए कह उठी मेरे रहते
अंधकार कैसे संभव भला
मैने झट से अपनी
बंद पलको को खोला और
उस चमकती हुई रौशनी का
स्‍वागत किया
जहां हर दृश्‍य मन के संशय का
निराकरण करता नजर आया
......
एक अनंत शक्ति हमारे मन में
विश्‍वास के बीजों की
पोटली रख छोड़ती है
जिसे हम वक्‍त-बेवक्‍़त
बो दते हैं संयम की धरा पर
....
संयम की धरा
हमारे विश्‍वास के बीज को
अंकुरित कर पोषित करती है
ताकि हमारी आस्‍था
उस अनंत शक्ति पर सदैव बनी रहे !!!

मंगलवार, 6 नवंबर 2012

वक्‍़त की किताब पर ... !!!













वक्‍़त की किताब
हर पृष्‍ठ पर हर लम्‍हे का
हिसाब रखते-रखते
भर चली है
...
अंको की गणना करता
उम्र का यह पड़ाव
सोचता है कभी ठहरने को
तो ठहर नहीं पाता
सब कुछ वक्‍़त की किताब पर
अंकित होने के फेर में
उसके इर्द-गिर्द
एक ताना-बाना रचता
काल करे सो आज कर
आज करे सो अब  ...
को चरितार्थ करता
चला जा रहा है
...
कभी डालना चाहती हूँ
एक दृष्टि
पिछले पृष्‍ठों पर
चाहती हूँ कुछ सुधार करना
पर कहां संभव है प्रूफ रीडिंग
वक्‍़त की किताब पर
जो जैसा है उसे वैसा ही छोड़
आगे बढ़ना
कोशिश यही लेकर
अगले पृष्‍ठों पर कोई मिस्‍टेक न हो !!!

सोमवार, 5 नवंबर 2012

कुछ गुनाह ...!!!

कुछ गुनाह भागते हैं
भागते ही रहते हैं सच का सामना करने से
सच का भय उन्‍हें चैन से पलकें भी
झपकने नहीं देता
खोजती दृष्टि ... के आगे
जब भी पड़े सूखे पत्ते से कांप उठे
या पीला ज़र्द चेहरा लिये
अपनी ही नजरो से ओझल होते
...
कुछ गुनाहों को मैने
देखा है नींद के लिये तरसते हुये
खुली आंखों से लम्‍बी रातों की कहानी
सन्‍नाटों को चीरती अंजानी आवाजें
घबराकर कानों पर हथेलियों का रखना
चिल्‍लाकर दीवारों के आगे सच कुबूल करना फिर
पसीने से तर-ब-तर हो
थाम लेना सिर को उफ् ये क्‍या हो गया !
के शब्‍द
सच कहूँ जीना दूभर कर देते हैं
...
कुछ गुनाह़ अंजाने में हो जाते हैं जब भी
सच के सामने शर्मिन्‍दा होते हैं
पश्‍चाताप के आंसुओं से
मन की सारी ग्‍लानि को बहाकर
कुबूल कर लेते हैं अपना अपराध और
हर गुनाह से तौबा कर सच का साथ देते हुए
यही कहते हैं ...
सच कभी छिपता नहीं
कभी कैद नहीं होता 
अटल .. अविचल ... अमिट जो होता है
वही मन का सुकून होता है !!!
....

गुरुवार, 1 नवंबर 2012

शब्‍दों के रिश्‍ते हैं शब्‍दों से ....













शब्‍दों के रिश्‍ते हैं
शब्‍दों से
कोई चलता है उँगली पकड़कर
साथ - साथ
कोई मुँह पे उँगली रख देता है
कोई चंचल है इतना
झट से जुबां पर आ जाता है
कोई मन ही मन  कुलबुलाता है
किसी शब्‍द को देखो कैसे खिलखिलाता है
....
दर्द के साये में शब्‍दों को
आंसू बहाते देखा है
शब्‍दों की नमी
इनकी कमी
गुमसुम भी शब्‍दों की द‍ुनिया होती है
कुछ अटके हैं ... कुछ राह भटके हैं
कितने भावो को समेटे ये
मेरे मन के आंगन में
अपना अस्तित्‍व तलाशते
सिसकते भी हैं 
....
जब भी मैं उद‍ासियों से बात करती हूँ,
जाने कितनी खुशियों को
हताश करती हूँ
नन्‍हीं सी खुशी जब मारती है  किलकारी,
मन झूम जाता है उसके इस
चहकते भाव पर
फिर मैं  शब्‍दों की उँगली थाम
चलती हूँ हर हताश पल को
एक नई दिशा देने
कुछ शब्‍द साहस की पग‍डंडियों पर
दौड़ते हैं मेरे साथ-साथ
कुछ मुझसे बातें करते हैं
कुछ शिकायत करते हैं उदास मन की
कुछ गिला करते हैं औरों के बुरे बर्ताव का
मैं सबको बस धैर्य की गली में भेज
मन का दरवाजा बंद कर देती हूँ !!!

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....