शनिवार, 23 फ़रवरी 2013

यक़ीन के रास्‍ते में !!!!

दबी जुबान का सच  सुनकर तुम्‍हें
यक़ीन होता है क्‍या ???
फिर आखिर उस सच के मायने
बदल ही गये न !
शक़ का घेरा कसा पर यह कसाव
किस पर हुआ कैसे ह‍ुआ
हर बात बेमानी हुई
सच आज भी अपनी जगह अटल है
पर दबी जुबान का सच
शक़ के घेरे में ही रहता है
यक़ीन के रास्‍ते में
जब भी दोहरापन आता है
सच दूर खड़ा होकर उसकी इस हरक़त पर
उसे ही तिरस्‍कृत करता है
...
जाने क्‍यूँ लोग सच की भी परतें उतारने लगते हैं
छीलते जाते हैं - छीलते जाते है इतना
जब तक सच के नीचे दब न जायें
भूल जाते हैं परत-दर-परत सच का वज़न
और बढ़ता जाएगा फिर वही सच
सवालों के कटघरे में अपनी परतों के साथ
सुबूत बन जाएगा उसके खिलाफ़
विश्‍वास का कत्‍ल किया, सच को गुनहगार बनाया
फिर भी जी नहीं माना तो खुद को
बेक़सूर बता निर्दोष होने की दुहाई दी
और समर्पण कर दिया !!!

सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

छला गया व्‍यक्तित्‍व !!!!

मेरी चुप्‍पी से यदि कोई आहत है
तो वो है मेरा अन्‍तर्मन
जो कहना चाहता है गलत को गलत
बुरे को बुरा पर यहाँ
सच का साथ देने पर कहा जाता है
आक्रोशित मत हो, वक्‍त आने दो
वक्‍़त तो ये आया और वो गया
और छला गया व्‍यक्तित्‍व !!!!
...
धैर्य की परिभाषा यदि
खामोशी अख्तियार करना है तो
इस परिभाषा को बदला जाना चाहिये
अन्‍याय के खिलाफ आवाज उठाना
यदि किसी वर्ग विशेष अथवा किसी की
व्‍यक्तिगत भावनाओं को ठेस पहुँचाना है तो
इसकी शुरूआत कहाँ से हुई
किससे हुई एक नज़र वहाँ भी
उठनी चाहिये न कि शांति का पाठ पढ़ाकर
उन भावनाओं को एक नई गल्‍ती की प्रतीक्षा में
मौन हो कतारबद्ध कर देना चाहिये  !!!!
....

शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2013

बिना किसी को खबर किये !!!!!!

रूहों को लिबास बदलना
खूब भाता है
बिना किसी गम के हँसते-हँसते
बदल लेती हैं ये बिना किसी को खबर किये
लिबास अपना
...
फिर रोकर ये बताना चाहती हैं दुनिया को
इसमें हमारी कोई रज़ा न थी
हम तो कठपुतलियाँ हैं बस
जो भी ये करिश्‍में करता है
वो ऊपरवाला है  !!!

मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

आदरणीय रश्मि प्रभा जी का जन्‍मदिन .... !!!!

कल तो शुभकामनाओं से भरा होगा, ही पर उस आने वाले खुशनुमा कल की आहट से आज की साँझ भी कुछ उल्‍लासित होने को आतुर है, आदरणीय रश्मि प्रभा जी का जन्‍मदिन और वसंत ऋतु  दोनो का अनोखा संगम है एक ओर जहां विद्या की देवी सरस्वती की पूजा धूमधाम से की जाती है वहीं उन्‍होंने भी माँ सरस्‍वती के आँगन में जन्‍म लिया 13 फरवरी (गुरूवार) को और वरदान स्‍वरूप पाई माँ सरस्‍वती की असीम कृपा... कई बार लगता है ऐसे जैसे वसंत से अलग नहीं है उनका व्‍यक्तित्‍व, विरासत में  मिला लेखन तो सरल मन में स्‍नेह, सबको साथ लेकर चलने का भाव, मन कभी किसी बात से आहत हो भी यदि तो भी वे उससे परे सहजता लिये एक मुस्‍कान के साथ हर परीस्थिति पर भारी पड़तीं, इसी क्रम में शब्‍दों के साथ ताल-मेल, उनसे घनिष्‍ठ होती उनकी कलम हर रोज़ विचारों का आबोदाना तलाशती वे हर अपरीचित शख्‍स से परीचित होने का जज्‍बा लिये शब्‍दों के शब्‍दों से रिश्‍ते बनाते हुये वे चढ़ती हैं नित नये सोपान, जहाँ हर नज़र बस हैरान सी  मन में सम्‍मान लिये नतमस्‍तक हो जाती है ....तो वहीं उनकी ओजस्‍वी कलम की सहजता इन शब्‍दों में भी .... कवि पन्त के दिए नाम रश्मि से मैं भावों की प्रकृति से जुड़ी . बड़ी सहजता से कवि पन्त ने मुझे सूर्य से जोड़ दिया और अपने आशीर्वचनों की पाण्डुलिपि मुझे दी - जिसके हर पृष्ठ मेरे लिए द्वार खोलते गए . रश्मि - यानि सूर्य की किरणें एक जगह नहीं होतीं और निःसंदेह उसकी प्रखरता तब जानी जाती है , जब वह धरती से जुड़ती है . मैंने धरती से ऊपर अपने पाँव कभी नहीं किये ..... और प्रकृति के हर कणों से दोस्ती की . मेरे शब्द भावों ने मुझे रक्त से परे कई रिश्ते दिए , और यह मेरी कलम का सम्मान ही नहीं , मेरी माँ , मेरे पापा .... मेरे बच्चों का भी सम्मान है और मेरा सौभाग्य कि मैं यह सम्मान दे सकी.... तो आज .. इस खास दिन पर एक गुल्‍लक अपने साथ लाई हूँ भावनाओं की, जिसमें डालना चाहती हूँ कुछ अंश स्‍नेह का, जिसमें आज सब बारी - बारी डालेंगे अपनी दुआयें, जिनकी खनक से आने वाला हर लम्‍हा दुआ बन उनकी झोली में खुशियों संग समाना चाहता है ....

कुछ पल चंदन होना चाहते हैं
महकना चाहते हैं
तुम्‍हारे आँगन में हवाओं के संग
कुछ पल दुआओं के
तुम्‍हारे लिये इस संदेश के साथ
तुम्‍हारी हथेलियों तक
पहुँचना चाहते हैं
जब तक विश्‍वास रहे दुनिया में
तुम मुस्‍कराओ
........
आज के दिन
हर लम्‍हे को मैने बरसों बरस की
खुशियाँ सौंपी हैं
हर लम्‍हा चला है मेरी चौखट से
तुम्‍हारे घर के आंगन के लिये
ले‍कर जन्‍मदिन की अनंत शुभकामनाएँ !!!

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

वक्‍़त की धूप में ... !!!

कभी अपनी जिद को
खबर करना मेरी जिद की
कुछ तसल्‍ली हो जाएगी उसको
कोई तो उस जैसा है
....
पलकों के साये में
जब भी अश्‍कों को पनाह मिली,
मत पूछ मुहब्‍बत कितना तड़पी
यूँ बूँद - बूँद बहते हुये
...
प्‍यास जागती है
बड़ी ही शिद्दत से हर रिश्‍ते में
कभी वक्‍़त की धूप में
जैसे छांव मिले
चलते-चलते
......

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....