रविवार, 4 अक्तूबर 2015

तर्पण की हर बूँद ....

पापा हथेली में जल लेकर
आपका ध्‍यान करती हूँ
तर्पण की हर बूँद का
मैं मान करती हूँ
कुछ बूँदे पलकों पे आकर
ठहर जाती हैं जब
तो आपका कहा
कानों में गूँजता है
बहादुर बच्‍चों की आँखों में
आँसू नहीं होते
उनकी आँखों में तो
बस चमक होती है
जीत की, उम्‍मीद की,
विश्‍वास की
एक हौसला होता है
उनके चेहरे पे
और मैं मुस्‍करा पड़ती थी!
...
पलकों पे ठहरी बूँदे
जाने-अंजाने
कितना कुछ कह गईं
आपका दिया मेरे पास
हौसला भी है
उम्‍मीद भी है और विश्‍वास भी
पर आपकी कमी
कौन पूरी कर सकता है
तो इस तर्पण की हथेली में
गंगा जल के साथ
छलका है जो अश्रु जल नयनों का
वो स्‍नेह है
आपकी अनमोल यादों का
जिसे मैने अपने सिर-माथे लिया है
और आपको अर्पित ही नहीं
समर्पित भी किया है अंजुरी का जल
बूँद-बूँद स्‍नेह मिश्रित
पूरी निष्‍ठा से इस पितृपक्ष में!!!

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....